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| तथागत गौतम बुद्ध को विषणु का अवतार घोषित करने में तुले ब्राह्मण |
"बौखलाया ब्राह्मण "
दुनियाँ में तथागत भगवान गौतम बुद्ध के करुणा ,मैत्री और ध्यान को जीवन का आधार मानने से ब्राह्मणों ने बुद्ध को हिन्दू धर्म से जोड़ने की सुनियोजित साजिश !हमारे देस में हिंदुत्व का दम भरने वाले अपने को बुद्धिजीवी होने का भरम पाले हुए, तथागत बुद्ध को हिन्दू सिद्ध करने में लगे है! पहले तथागत को विष्णु का नोवा अवतार बता कर ,बुद्ध को तो स्वीकार किया ,लेकिन उनके सिद्धांत को यह कहकर अस्वीकार किया कि भगवान विष्णु के अवतार बुद्ध ने अपनी शिक्षा माध्यम से दुनिया में अधर्म फैलाया। और अब बुद्ध को हिन्दू होने का भ्रामक प्रचार करने में लगे है! जबकि किसी भी धर्म शास्त्र से हिन्दू धर्म होने की भी पुष्टि नहीं होती है! उस समय ब्राह्मण धर्म हुआ करता था जो मनु के वर्ण के सिद्धान पर आधारित था!
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| बुद्ध हेड को शिवलिंग बना कर पूजा अर्चना करते ब्राह्मण |
जानिए ब्राह्मण धर्म और बौद्ध धम्म मूलतः भिन्नता :-
- हिन्दू धर्म भगवान पर केंद्रित है जबकि बौद्ध का धम्म मनुस्य और मनुष्य के दुख पर केंद्रित है! जहाँ भगवान का कोई स्थान नहीं है!
- हिन्दू धर्म के अनुयायी के लिए पहली अन्यवारी शर्त भगवान के प्रति असीम श्रद्धा भाव के साथ उसे धर्म पर तर्क करने की इजाजत नहीं दी जाती है! इसके विपरीत बौद्ध धम्म के अनुयायी को श्रद्धा के स्थान पर संदेह सिखाया जाता है। तथागत गौतम बुद्ध स्वय अपने पर भी संदेह करेने को कहते है और कहते है किसी भी बात को इसलिए मत मानो की में (बुद्ध) कह रहा हूँ, किसी भी बात को इसलिए मत मानो की शास्त्रों में उसका उल्लेख है और किसी भी बात को इसलिए भी मत मानो की वह हजारों वर्षों की परम्परा है बुद्ध कहते है प्रत्येक व्यक्ति को अपने विवेक और विश्लेषण के आधार पर उस बात को तर्क की कसौटी पर कश कर मानना चाहिए! हिन्दू धर्म में मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति मरणोपरांत होती है जबकि बौद्ध धम्म के अनुसार मनुष्य जीते जी अर्हत हो सकता है
- हिन्दू धर्म में मनुष्य के सुख-दुख को भाग्ये और भगवान से जोड़ कर देखा जाता है और भगवान से ही सुख की कामना करनी होती है जबकि धम्म मनुष्य के सुख-दुःख का कारण स्वयं मनुष्य के शुभ और अशुभ कर्मों का मानता है और अप्प दीपोभवः के सिद्धांत धारणा पर आधारित है!
- उपरोक्त भिन्नता के आधार पर हिन्दू धर्म (ब्राह्मण धर्म) और बौद्ध धम्म परस्पर विरोधी धर्म है! हिन्दू धर्म मनुष्य को मन से गुलाम बनाने का सूक्षम सडयंत्र है जो मनुष्य को भाग्य, भगवान और स्वर्ग, नर्ग के जाल में फंशा कर उसकी बौद्धिक समताओं को ख़ारिज करता है और बौद्ध धम्म मनुष्य को पूर्णता स्वतंत्र कर अपनी बौद्धिक क्षमता के अनुसार जीने को प्रेरित करता है!
हिन्दू धर्मावलंभी प्रबुद्ध जनों की जानकारी के लिए तथागत गौतम बुद्ध के धम्म के मूल सिद्धांत आर्यसत्य, अष्टांगिक मार्ग पर प्रकाश डालने का प्रयास करता हूँ।
चार आर्य सत्य की व्याख्या करते हुए बुद्धकहते है, "भिखुओं" दुख पहला आर्य सत्य है, दुख समुदय (कारण) दूसरा आर्य सत्य है, दुख निरोध तीसरा आर्य सत्य है और दुख निरोध-गामिनी प्रतिपदा चौथा आर्य सत्य है! "इस विषय में बुद्ध ने बताया" मेने जाना उनका अभ्यास करने योग्य है, मैंने जाना कि मैंने उसका अभ्यास किया, तब मुझे अभिनव (नूतन) दृष्टि प्राप्त हुई, ज्ञान प्राप्त हुआ, विद्दा प्राप्त हुई और अलोक उत्पन हुआ। जब तक प्रत्येक के तीन और कुल बारह प्रकार के इन चार आर्यसत्यो के विषय में मुझे ज्ञान नहीं मिला, तब तक मुझे पूर्ण सम्बोधि प्राप्त नहीं हुई!
- प्रथम आर्य सत्य:-प्रथम आर्य सत्य कि व्याख्या करते हुए बुद्ध कहते है, " जन्म भी दुख है, बुढ़ापा भी दुक्खा है, मरण भी दुख है, शोक भी दुख है, रुदन भी दुख है, मन की खिन्नता भी दुख है और हैरानी दुख है! अप्रिय से संयोग और प्रिय से वियोग भी दुख है! इच्छा करके जिसे नहीं पाता वह भी दुख है! संक्षेप में पांचो उपादान स्कंध दिखा है!बुद्ध ने पांच उपादान इस प्रकार बताए है—रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञनं एहि पांचो उपादान स्कंध है!
- रूप- चारो महाभूत-पृथवी, जल, वायु, अग्नि, इ रूप उपादान स्कंध है!
- वेदना-हम वस्तुओ या उनके विचार के संपर्क में आने पर जो सुख, दुख या न सुख, न दुख के रूप अनुभव करते है, इसे ही वेदना स्कंध कहते है!
- संज्ञा-वेदना के बाद हमारे मस्तिष्क पर पहले से ही अंकित संस्कारो द्वारा जो हम पहचानते है! " यह वही वेदना है ' इसे संज्ञा कहते हैं!
- संस्कार-रूपों की वेदनाओं और संज्ञाओं का जो संस्कार मस्तिष्क पर पड़ा रहता है और जिस सहायता से हमने पहचाना-'यह वही वेदना है' इसे संस्कार कहते है!
- विज्ञानं-चेतना या मन को विज्ञानं कहते है!
- दुख-हेतु- दुख हेतु क्या है? तृष्णा-काम (भोग) की तृष्णा, भाव की तृष्णा, विभव की तृष्णा। इन्द्रियों के जितने प्रिये या काम है, उन विषयों के साथ सम्पर्क, उनका स्मरण, तृष्णा को पैदा करता है,काम (प्रिय भोग) के लिए राजा भी राजाओं से लड़ते है! क्षत्रिय भी क्षत्रियों से लड़ते है, ब्रामण भी ब्राह्मणों से लड़ते है, गृहपति (वेस्य) भी ग्रहपति से, माता भी पुत्र से, पुत्र भी माता से, पिता पुत्र से, पुत्र पिता से, भाई-भाई से, बहन भाई से और भाई बहन से भिन्न-भिन्न से लड़ते है! वह आपस में कलह-कलेश विग्रह विवाद करते-करते एक दूसरे पर हाथ से भी, डंडे से भी शस्त्र से भी आक्रमण करते है! वह (इससे) मर भी जाते है, मरण सामान दुख को प्राप्त होते है! " बुद्ध ने कहा, भिक्खुओं! पुनः-पुनः उत्पन होने वाली और उसके विषय में रहने वाली तृष्णा (जिसे काम तृष्णा, भाव तृष्णा और विनाश तृष्णा कहते है) ही दुख समुदय नामक दूसरा आर्य सत्य है!
- दुःख निरोध -वैराग्ये से उस तृष्णा का पूर्ण निरोध करना, त्याग करना, उससे मुक्ति पाना, यह दुःख निरोधा का तीसरा आर्य सत्य है! दूसरे सब्दो में इसे इस प्रकार कहा जा सकता है! "उसी तृष्णा का अत्यंत निरोध परित्याग, विनाश, को दुःख निरोधा कहते है प्रिय विषयों और तद्विषयक, विचारों विकल्पों से जब तृष्णा छूट जाती है, तभी तृष्णा का निरोधहोता है" "तृष्णा का नाश होने पर उपादान (=विषयों के संग्रह करने) का निरोध होता है बहन के निरोध से जन्म (=पुनर्जन्म) का निरोध होता है! जन्म से बुढ़ापा, मरण, शोक, रोना, दुःख, मन की खिन्नता, हैरानगी नस्ट हो जाती है! इस प्रकार दुखों का निरोध हो जाता है!" यही दुःख-निरोध बुद्ध के सारे दर्शन का केंद्र बिंदु है!
- दुःख निरोध- गामिनी प्रतिपदा—ही चौथा आर्यसत्य है! " दुःख निरोध की और ले जाने वाला मार्ग अष्टांगिग मार्ग होता है इसका अनुशीलन करने से दुखों का अंत किया जा सकता है!
- अष्टांगिक मार्ग :- जैसा की पहले बताया जा चूका है कि ' दुःख निरोध-गामिनी प्रतिपदा के, सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाचा, सम्यक कर्मान्त, सम्यक आजीविका, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति, सम्यक समाधी, ये आठ अंग होते है! आर्य अष्टांगिक मार्ग कि आठ बातों को, ज्ञान (=प्रज्ञा) , सदाचार (=शील) , योग (=समाधी) इन तीन भागों (=स्कन्द) में बांटा जा सकता है!
- सम्यक दृष्टि (ठीक ज्ञान)
- सम्यक संकल्प (ठीक संकल्प)
- शील-समक वाचा (ठीक वचन)
- सम्यक कर्म (ठीक कर्म)
- सम्यक आजीविका (ठीक व्यापार)
- सम्यक व्यायाम (ठीक प्रयत्न)
- समाधी-सम्यक स्मृति (ठीक स्मृति)
- सम्यक समाधी (ठीक समाधी)
- सम्यक दृष्टि:- कायिक, वाचिक, मानसिक, भले भूरे कर्मों के ठीक-ठीक ज्ञान को सम्यक दृष्टि कहते है और दुःख हेतु निरोध, मार्ग का ठीक से ज्ञान ही सम्यक दृष्टि कहते है!
- सम्यक संकल्प:- राग, हिंसा, प्रतिहिंसा रहित संकल्प को ही सम्यक संकल्प कहते है
- सम्यक वचन;-झूठ, चुगली, कटु भाषण और बकवाश से रहितं सच्ची मृदु बातों को बोलना!
- सम्यक कर्म:-हिंसा, चोरी, व्यभिचार रहित कर्म ही ठीक कर्म है!
- सम्यक जीविका:-झूठी और ग़लत जीविका को छोड़ सच्ची जीविका से शरीर यात्रा चलाना! मात्र गाय ही नहीं प्राणी हिंसा सम्बंधित निम्न जीविकाओं को ही बुद्ध ने झूठी जीविका कहा है! ये है हथियार का व्यापार, प्राणी (मनुष्य) का व्यापार, मांस का व्यापार, मध् का व्यापार और विष का व्यापार!
- सम्यक व्यायाम:-इन्द्रियों पर सयंम, बसी भावनाओं को रोकने, तथा ावहवही भावनाओं के उत्पाद और उत्पन्न अच्छी भावनाओं को स्थिर रखने का प्रयत्न ही सम्यक व्यायाम कहलाता है!
- सम्यक स्मृति:-काया, वेदना चित और मन के धर्मों को ठीक स्थतियों, उनके मिलन, क्षण-विध्वंसी आदि होने के सदा स्मरण रखना सम्यक स्मृति कहलाते है!
- सम्यक समाधी;-"चित कि एकाग्रता को समाधी कहते है!" ठीक समाधी वह है जिसमे मन के विक्षेपों को हटाया जा सके! उपरोक्त सिद्धांत तथागत गौतम बुद्ध के धम्म का मूल है जो मूलतः दुनिया के सभी धर्मों से अकेला और अनूठा मन का शुक्ष्मतम विश्लेषण है जिसे धर्म कि श्रेणी में रखना नासमझी होगी। "नमोः बुद्धाय "



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