मोदी के स्थान पर योगी "संघ की चाहत "

  • अगला चुनाव हिन्दुवाद के मुद्दे पर लड़ सकती है भाजपा। 
  • मोदी जी के स्थान पर योगी जी के नेत्र्तव की सम्भावना अधिक।
  • राजनीति सामजिक  तनाव से ताकत पाती है।
  • राजनीतिकहित को एक के बाद एक नए संकट आते रहना चाहिए ,अगर कभी ऐसा न हो तो काल्पनिक संकट ही खड़ा कर दिए जाते है। 
  •  संघ और भाजपा जब मोदी जी के विकाश को ढूंढ नहीं पाए। और मोदी जी का भाजपा पर एकाधिकार,संघ के वरिष्ठ नेता रहे लालकृष्ण अडवाणी ,मुरलीमनोहर जोशी और यशवंत सिन्हा जैसे अनेक नेताओं को भाजपा के शासन  में सत्ताहीन कर निरंतर अपमानित करना। संघ का मोदी जी पर नियंत्रण कमजोर होता देख ,संध ने मोदी जी के गृह परदेस गुजरात में चुनाव की कमान योगी जी सौंपी , जिस गुजरात को विकास का मॉडल बता सम्पूर्ण भारत में प्रचार किया हो ,आज मोदी जी के परदेस में अचानक योगी जी जरुरत क्यों आन पड़ी ? 

  • योगी आदित्यनाथ को संघ-बीजेपी नेतृत्व राष्ट्रीय स्तर पर प्रॉजेक्ट कर रहा है वह सामान्य नहीं है। शिवराज सिंह चौहान और रमण सिंह जैसे स्थापित और अनुभवी मुख्यमंत्रियों को पीछे रखते हुए अगर योगी आदित्यनाथ को केरल में आगे किया गया तो उसके पीछे के संकेतों को समझना मुश्किल नहीं है। आलम यह है कि बीजेपी और संघ खेमे के अंदर भी दबी जुबान से यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या योगी के कद को बढ़ाने की सुविचारित कोशिश की जा रही है।
  • योगी जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से अब तक अपने प्रदेश में विकास के अजेंडे को कुछ खास आगे नहीं बढ़ा सके हैं। कानून व्यवस्था की दुर्गति तो अपनी जगह है ही,
    गोरखपुर के अस्पताल में हुई बच्चों की मौत ने सुशासन के उनके दावों की पूरी तरह पोल खोल दी। न तो वह रोजगार के मोर्चे पर कुछ खास कर पाए हैं, न कोई बहुत बड़ा प्रॉजेक्ट ला पाए हैं। मगर संघ-बीजेपी नेतृत्व शायद उनसे इन सबकी अपेक्षा भी नहीं कर रहा
    उनके लिए यही काफी है कि योगी मुख्यमंत्री होते हुए गोरखपुर पीठ के महंथ की भूमिका में पूजा-पाठ करते-कराते भीदिख जाते हैं। उनके मुख्यमंत्री बनते ही राज्य में जो पहली मुहिम शुरू हुई वह थी एंटी रोमियो दस्ते की कार्रवाई. इसके अलावा चिकन-मटन का छोटा-बड़ा कारोबार करने वालों पर ऐक्शन। दोनों का आधार था। एक का मकसद प्रदेश में लड़कियों को सुरक्षित माहौल देना बताया गया तो-तो दूसरे का अवैध कारोबार बंद करवाना लेकिन असली मंशा किसी से छुपी नहीं रह सकी। दोनों कार्रवाइयों में निशाने पर एक खास समुदाय था और संघ-बीजेपी जिसे अपना मुख्य समर्थक वर्ग मान कर चल रहा है, उसे खुश करने को यह काफी था।
  • 2014 में मोदी ने विकास के नारे पर चुनाव लड़ा था लेकिन संभवत: संघ और बीजेपी नेतृत्व को एहसास हो गया है कि यह नारा 2019 में दोबारा नहीं चलेगा। इसलिए योगी को हिंदुत्व के सबसे बड़े चेहरे के रूप में पेश किया जा रहा है ताकि विपक्ष सरकार की नाकामियों को मुद्दा न बना सके.
  • मगर ऐसी आक्रामक राजनीति के लिए निरंतर संकट की स्थिति बने रहना ज़रूरी होता है। जैसे ही हालात सामान्य होने लग जाएं वोटर मनुष्य के रूप में सोचना शुरू कर देते हैं। उनमें सहज मानवीय भाव जगने लगते हैं फिर उन्हें अन्य मनुष्यों के खिलाफ भड़काना आसान नहीं होता। इसलिए इस राजनीति के लिए अनिवार्य होता है कि एक के बाद एक संकट पैदा होता रहे। अगर कभी ऐसा न हो तो काल्पनिक संकट ही खड़ा कर दिया जाए. संकट का वह डर ही वोटरों में ऐसी असुरक्षा पैदा करती है जो उन्हें मनुष्य विरोधी भावनाओं के साथ जोड़े रखती है।
  • राजनीति सामजिक  तनाव से ताकत पाती है। उन्हें आगे कर संघ और बीजेपी नेतृत्व इसी राजनीति को आगे बढ़ाना चाह रहा है। 

Comments