"रक्षा बंधन " प्रभाव खोती परम्परा !


रक्षा की मांग ही अंततः रक्षक को राक्षस और रक्षित को असहाय  बनाती  है !

  

  

कपिल बर्मन 
साथियों रक्षा शब्द की उत्पति और रक्षा भाव, समाज में व्याप्त सामाजिक असमानता, अन्याय, अत्याचार और शोषण की और इंगित करता है।  रक्षा तभी संभव हो सकती है, जब एक व्यक्ति या समाज कमजोर, असहाय और लाचार स्थति में हो।  तब समाज में व्यक्ति, वस्तु की रक्षा की ज़रूरत महसूस होती है।  व्यक्ति और समाज को लाचार और असहाय बनाने के लिए उस व्यक्ति या समाज पर आमनवीय रूप से अन्याय अत्याचार और शोषण कर उसे असहाय और लाचार कर उसमें असुरक्षा का भाव पैदा करना, रक्षा करने की पहली शर्त है, तभी एक व्यक्ति या समाज में रक्षित  भाव पनपता है और फिर वह अपनी इज्जत, मान मर्यादा और जान माल को बचाने के लिए किसी अन्य से रक्षा की गुहार लगता है।  और इसी घटना से एक रक्षक का जन्म होता है, तब ही एक रक्षक को रक्षा करने का अवसर मिलता है ! जिस प्रकार एक डाक्टर का होना मरीज पर निर्भर करता है और मरीज होने के लिए एक स्वस्थ व्यक्ति को अस्वस्थ (बीमार) होना अनिवार्य है! तभी एक डाक्टर की ज़रूरत महसूस होती है ठीक उसी प्रकार रक्षा के लिए रक्षित को लाचार, मजबूर अवस्था में होना रक्षक में महत्त्व को बल प्रदान करता है!

कितना सार्थक है रक्षा बंधन:-

 हिन्दू धर्म का अति महत्त्वपूर्ण त्यौहार रक्षा बंधन है ! मान्यता के अनुसार बहन अपने भाई से अपनी रक्षा का आग्रह करती हुई अपने भाई के हाथ पर डोरी बाँध कर अपनी रक्षा करने की भाई से कसम लेती है और भाई उसके सर पर हाथ रख बहन को आश्वस्त करता है, कि तेरी रक्षा मेरा कर्तव्य है में अंतिम सांस तक अपने कर्तव्य का निर्वाह करूँगा!


कल वह ही भाई किसी की बहन के साथ बदसलूखी और बलात्कार तक करने को आमादा हो जाता है, जिसने कल रक्षक बनने कि कसम ली थी आज वह कैसे भक्षक बन जाता है! और जो बहनें कल राखी बांध कर सुरक्षा की मांग कर रही थी आज सड़क पर उन्ही भाइयों की हवस का शिकार होने के डर से सहमी हुई, नजरें झुकाई सड़क से गुजरती है! और हम सदियों से रक्षा बंधन का त्यौहार मनाये जा रहें है, कितनी सार्थकता बची है, यह  रक्षा बंधन में यह आप-हम सबको मिलकर सोचना होगा। 
नारी क्यों पुरुषों से रक्षा की गुहार लगाती है ?


रक्षा की मांग रक्षित को निरंतर कमजोर और असहाय बनाता है और पर पर आश्रित रहने का आदि बना देता है।  नारी को चाहिए कि उसे आत्मनिर्भर बन अपने मान सम्मान और स्वाभिमान कि रक्षा स्वंम करनी चाहिए।  जब तक नारी पुरुषों से सुरक्षा मांग करती रहेंगी, तब तक नारी सुरक्षित नहीं हो सकती है उसे अपने स्वतंत्र अस्तित्व कि घोषणा करनी होगी। 

कब तक नारी पुरुष कि छाया बनी  रहेगी ?

अगर उसे अपने अस्तित्व कि घोषण करनी है तो उसे कहना पड़ेगा में-में हूँ।  में किसी कि पत्नी नहीं वह पत्नी होना गौण है, में-में हूँ।  में किसी कि माँ नहीं माँ होना गौण है, में-में हूँ।  में किसी कि बहन नहीं बहन होना गौण है! वह मेरा अस्तित्व नहीं मेरे अस्तित्व के अन्नत सम्बंधों में से एक सम्बन्ध है।  वह सभी सम्बंद्ध है वह में नहीं हूँ!ये स्पस्ट भाव आने वाली पीढ़ी की एक-एक लड़की में, एक-एक युवक्ति में, एक-एक नारी में होना चाहिए।


मेरा भी अपना अस्तित्व है कितनी हैरानी की बात है कि पृथवी पर नारी कि संख्या पुरुषों से ज़्यादा है, लेकिन नारी इतनी भयभीत हैं कि रस्ते पर निकलना मुश्किल हो गया है।  बिना रक्षक, पहरेदार के रास्ते पर चलना मुश्किल, नारी कि संख्या ज़्यादा है पृथवी पर और नारियां एक बार यह तय कर ले तो यह असंभव है कि एक पत्थर फेंका जा सके उनके ऊपर, एक तंज किया जा सके! लेकिन नारी के पास कोई भाव, कोई आत्मा नहीं है!
जब तक हम नैतिकता के नाम पर वासना का दमन सिखायेगें। तब तक नारी का सम्मान और नारी का अस्तित्व में आना असंभव है। 
जितनी रक्षा मांगी जाती है उसी अनुपात में रक्षित कमजोर होता चला जाता है! नारी को रक्षा मांगनी बंद कर देनी चाहिए! उचित होगा कि गाली सेह ले, उचित होगा कि पत्थर सेह ले, कंकड़ पत्थर फेंके जायेंगे गाली दे जायेगी, रास्ते में अपमानजनक शब्द फेंके जायेगे, अगली बार वह नारी अपने पति को साथ लेकर या अपने बेटे को साथ लेकर निकलेगी, वह जो पुरुष सड़क पर नारी को परेशान कर रहा है उससे बचने के लिए दूसरे पुरुष का सहारा लेगी तो यह दास्ताँ कभी भी ख़त्म होने वाली नहीं, यह दास्ताँ जारी रहेगी! अगर पुरुष बहार परेशान कर रहा है तो यह पुरुष वही है जो घर में बैठा है! ये दूसरा पुरुष नहीं है! जिसने आप पर पत्थर फेंका है, गाली दे है, वह भी किसी का भाई, किसी का पति है। और आपका भाई, आपका पति भी रास्ते में ये ही कर रहा होगा। इसको ध्यान रखना ज़रूरी है। 
यह सवाल एक पुरुष का नहीं है, यह पुरुष कर रहा है और सवाल पुरुष के हाथ रक्षा मांगने का नहीं है।  जितनी रक्षा मांगी जाती है। उतना ही रक्षित कमजोर होता चला जाता है।  नारी को रक्षा मांगनी बंद कर देनी चाहिए।

कपिल बर्मन

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