बसपा के पितामाह "चीफ़ साहब"

कपिल बर्मन,सहारनपुर 

साहब कांशीराम के हम सफ़र मैहर सिंह (चीफ़ साहब)


मान्यवर साहब कांशीराम जी के शुरुवाती दौर के सारथी मैहर सिंह (चीफ़ साहब ) 
मान्यवर साहब कांशीराम जी के बेहद करीबी रहे मान्यवर मैहर सिंह (चीफ़ साहब),जिन्होंने साहब कांशीराम जी के साथ शुरुवाती दौर से ही सामाजिक परिवर्तन एवं आर्थिक मुक्ति आंदोलन को परवान चढाने में साहब के कंधे से कन्धा मिला कर साथ रहे,और उन्होने संगठन में  हर महत्वपूर्ण फेंसलो में उनकी अहम् भूमिका रही ,मैहर सिंह (चीफ साहब) अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर भी एक ऊर्जावान नौजवान भीम सैनिक की भांति हर उस सामाजिक अन्याय अत्याचार और शोषण के विरुद्ध संघर्ष को व्याकुल रहते है।
आज आपको मैहर सिंह (चीफ साहब) के बहुजन समाज पार्टी की अहम् भूमिका और सामाजिक आंदोलनों पर नजर डालेंगे  है।
 जनजागरण करते बहुजन नायक 
 साहब कांशीराम जी और बहन कुमारी मायावती जी के बहुत से  चुनाव उन्ही के नेत्र्तव में लड़ाये गए। उत्तरप्रदेश में बहन कुमारी मायावती को मुखयमंत्री बनाने में उनका अहम् योगदान रहा ।
बहन जी के सफ़ल सारथी की भूमिका में मान्यवर चीफ़ साहब 
एक कामयाब व्यक्ति की कामयाबी की बुनियाद में कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते है ,जो एक मक़सद के लिए जीवन का सर्वस्व कुर्बान कर देते है और अपने नेता के नेत्र्तव, और उसके प्रति निष्ठा के साथ बिना किसी व्यक्तिगत हित के उसे निरंतर उर्जित करते रहते हैं। जो संगठन के लिए नीवं के  पत्थर साबित होते है। कुछ ऐसे ही है मान्यवर मैहर सिंह साहब, जिन्ह उनके चाहने वाले चीफ साहब कहे कर सम्मान से सम्बोधित करते हैं।
मंच पर साहब से रणनीति पर चर्चा करते चीफ साहब 

  • कांशीराम साहब को विशवनाथ प्रताप सिंह के सामने चुनाव लड़वाया। 
  • बहन कुमारी मायावती जी के  बिजनौर ,होशियारपुर ,और सहारनपुर (हरोड़ा) चुनाव प्रभारी रहे। 
  • बरेली शराब भट्टी बंद आंदोलन के थे इंचार्ज। 

कांशीराम साहब को विशवनाथ प्रताप सिंह के सामने चुनाव लड़वाया :-   
बसपा को राष्ट्रीय मान्यता मिलने पर बधाई देते चीफ़ साहब 
 कांशीराम साहब 'मनी ,माफिया और मिडिया' को वर्तमान हालातों में सत्ता का आधार मानते थे। जबकी बहुजन समाज 
'मनी ,माफिया और मिडिया' से कोसों दूर था। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुजन समाज की राजनैतिक हैसियत को स्थापित करने को, इलाहबाद से सन 1988 के लोकसभा चुनाव में उस समय के दिग्गज रहे नेता विशवनाथ प्रताप सिंह के सामने चुनाव लड़ने का निर्णय लिया गया । पश्चिम उत्तरप्रदेश से चुनाव लड़वाने के लिए मैहर सिंह चीफ "साहब" के नेत्र्तव में टीम को बुलाया।
इलाहबाद में चुनावी सभा को सम्बोधित करते हुए चीफ़ साहब 
 चीफ साहब कहते है सुरुवाती दौर में हम चुनाव पहचान स्थापित करने को लड़ते थे। लेकिन इलाहबाद के चुनाव में सभी राज्यों से आये  बसपा के कार्यकर्ताओं ने चुनाव प्रचार कुछ ऐसा किया, कि विवश होकर एक राजा साहब को अपना महल छोड़ सड़कों पर उतना पड़ा ,पहली दफा राजा साहब को लोकतंत्र में लोक शक्ती के सामने नतमस्तक होने को मजबूर किया। और वोटों की ख़ातिर राजा को गलियों की धूल फांकनी पड़ी ।तब एक नारा दिया 
"राजा नहीं फ़क़ीर है भारत की तक़दीर है " उस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की पहचान विश्व स्तर पर स्थापित हुई, क्योकि मुलाबला देश प्रधानमंत्री से था।  

बहन कुमारी मायावती जी के बिजनौर, होशियारपुर, और सहारनपुर चुनाव प्रभारी रहे :- 
 चुनाव लड़वाने में माहिर रहे चीफ साहब ने कांशीराम साहब और बहन के कई महत्वपूर्ण चुनाव लदवाये ,सबसे पहले बहन जी का 1985 का लोकसभा चुनाव बिजनौर से लड़वाया जिसमे कांग्रेस से मीरा कुमार जी और रामविलास पासवान प्रत्यासी थे ,फिर बहन जी को लोकसभा होसियारपुर से चुनाव लड़ाया उस वक्त पंजाब में आतंकवाद छाया हुआ था ,चीफ साहब कहते है कार्यकर्ता तरनतारन शहर में दीवार पर  पोस्टर लगाने  से डर रहे  थे ,फिर मेने स्वयं एक टीम बनाकर रात -रात  पोस्टर चिपकवाया करता था। 

हरोड़ा से बहन जी का नामांकन करवाते चीफ़ साहब 
सबसे महत्वपूर्ण चुनाव  (हरोड़ा) सहारनपुर 1996 में  विधान सभा चुनाव   था , क्योकि मुकाबला भाजपा और कांग्रेस से तो था ही ,पर 1993 में जिसके साथ मिल कर हमने  सरकार बनाई थी उस समाजवादी पार्टी से भी कड़ा मुकाबला था। बहन जी ने मुझे चुनाव का चीफ इलैक्शन एजेंट जिम्मा सौंपा, जिम्मा बहुत  चूनौतीपूर्ण था। परीक्षा की घड़ी थी,प्रतिस्ठा दांव पर लग गई।

चुनाव के दौरान तिलका जी बहन जी के साथ 
हरोड़ा विधानसभा सीट पर बहन जी के चुनाव लड़ने से सीट अतिसंवेदनशील  हो चुकी थी। बहन जी दो जगहों से चुनाव लड़ रही थी पहला हरोड़ा और दूसरा बिल्सी विधान सभा । मुझे कांशीराम साहब ने कहा,कि  मैहर सिंह' तुम्ह माया को बिल्सी से ज्यादा मतों से जीता होगा , खेर हमने स्थानीय कार्यकर्ताओं और बहार से आये अनुभवी साथियों के साथ मिल कर चुनाव लड़ा, जिसमे समाज ने अपने वोट की कीमत बेटी की इज्जत की कीमत के सामान समझ एक एक वोट अपनी बहन जी को मुखयमंत्री बनाने को डाला। उस चुनाव में दलितों का मतप्रतिशत 97 % तक हुआ, तब से सवर्णों में कहावत बन गई, की वोट डालना सीखना है तो चमारों से सीखो।
जीत का प्रमाण पत्र लेते हुए 
परिणाम हमारी आसा के अनुरूप आया, हमने बहन जी को ८५६४९ मतों से जीता कर विधान सभा भेजा, हरोड़ा से विधायक नहीं मुखयमंत्री चुना गया था। परिणाम आते ही प्रसासन ने मुझे घेर लिया, और पूछने लगे सर्टीफिकेट  लेकर बहन जी के पास  लखनऊ कब जायेंगे सर। तभी जिला अधिकारी सहारनपुर ने मुझे फोन पर कहा, चीफ़ साहब आपके साथ प्रशासन के कुछ लोग लखनऊ जायेंगे और मेने आपके जाने  बंदोबस्त कर दिया हैं। देखते ही देखते  थोड़ी देर में SDM सहारनपुर बसपा के कार्यालय पहुंच गए,और कहने लगे चीफ साहब आप विधाक का सर्टिफिकेट नहीं भावी माननीय मुख्यमंत्री जी की जीत का सर्टिफेकट ले जा रहे है।
जीत का जश्न मान्य चीफ़ साहब और विधायक इलम सिंह जी 
 में मन ही मन में अपने को गौरवांवित  महसूस कर रहा था और बाबा साहब का  सुक्रिया कर रहा था कि  आपके बताये रास्ते  पर चल आज हम देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तरप्रदेस की सत्ता तक पहुँच गए है ! तभी से मुझे बहुजन समाज के लोग  प्रेम से  चीफ साहब के उपनाम से  सम्बोधित करते है मुझे बहुत अच्छा महसूस होता है,और फिर वो पुराना जमाना  याद आ जाता है।



बहन जी का एक भाई के नाम संदेश 
बरेली शराब भट्टी बंद करो आंदोलन के थे इंचार्ज :- वाकया बरेली का है जब बरेली में एक अम्बेडकर स्कुल को खाली  करवाकर उसमे शराब की भट्टी खोल दी गई थी, साहब कांशीराम जी ने उसके खिलाफ आंदोलन का ऐलान कर दिया, बात उस ज़माने की है जब साहब कांशीराम जी के पास मात्र फैजाबाद वालो की तरफ से दी हुई पुराणी कार UTJ -2727 अम्बेस्डर हुआ करती थी, हमारे पास साधन-संसाधनों का बड़ा आभाव था।  मेरी ड्यूटी लगाई की तुम हरिदवार से साईकल मार्च करते हुए बरेली पहुंच आंदोलन की जिम्मेदारी संभालोगे। हम साईकल से अपने साथियों के साथ चल पड़े,
मान्यवर साहब कांशीराम साहब कार्यकर्ताओं के साथ हरिद्वार में 
रास्ते  में हर मोड़ पर काफिला बढ़ता गया, जब हम हजारों की संख्या में बरेली पहुंचे। देखते ही देखते आंदोलन ने उग्र रूप धारण कर लिया। अब हमें गिरफ्तारी देनी थी लेकिन हममे से अधिकांश साथी बामसेफ के थे जो कर्मचरी थे। साहब ने मीटिंग में हमसे पूछा ऐसे हालात में क्या करना चाहिए, तब मेरा जबाब था की साहब गांव में हमारे माँ- बाप तो नौकरी करते नहीं है और वो फ्री भी  है जेल जाने को। साहब ने कहा कौन अपने माँ -बाप को जेल भेजेगा? मेने जबाब दिया साहब सबसे पहले में अपने माँ -बाप को जेल भेजने को राज़ी हूँ,
 तो धीरे- धीरे सभी इस बात पर राजी हुए और अपने अपने परजनों को  लाकर जेल भरी।  आंदोलन सफल हुआ। मुझे आज भी याद हे वो बैरेक नंबर -6 जहाँ हमारे परिजन हमारे आंदोलन को सफल बनाने को बंद थे। जब मेने अपने पिता जी से पूछा कि  पिता जी जेल में कैसा लगा ?  पिता जी ने कहा 'वहां तो टाइम पर रोटी मिलती थी ,टाइम पर सोने को मिलता था और तो और बेटा वहां तो बीड़ी भी मिल जाती थी।
प्रारम्भिक दौर के बसपा से संस्थापक सदस्यों के बारे में जब चीफ़  साहब जिक्र में उनका समाज के प्रति दर्द और उनकी कुर्बानी समझ में आती है,चीफ़ साहब कहते है, कि एक बार जब खापर्डे साहब हरिद्धार आये, तो में उन्हें रिसीव करने रेलवे स्टेशन पहुंचा,पलेटफोर्म पर जब में खापर्डे साहब की अटैची उठाने की कौसिस की तो तुरंत उन्होंने अपनी अटैची अपने से उठा ली मेरे लाख मांगने पर भी उन्होंने अपनी अटैची मुझे नहीं दी ,मुझे लगा,उसमे कुछ ख़ास सामान होगा, इसीलिए उन्होंने मुझे अटैची नहीं थमाई। लेकिन जब हम घर पहुंचे,और उन्होंने अटैची में से कुछ निकलना चाहा तो मैंने देखा, अटैची के लोक ही ख़राब है उसे रस्सी से बांधा हुआ था। इतनी आर्थिक तंग्गी के बावजूद भी सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति आंदोलन का जज़्बा देख में हैरान था। किन-किन विकट परस्थितियों में बाबा साहब के कांरवा को आगे बढ़ाया नमन करते है ऐसे सामाजिक योद्धाओं को जो सामाजिक हित की ख़ातिर अपना सब कुछ निछावर करने को तत्पर थे।
प्रेसवार्ता में ,पत्नी तिलका देवी जी के साथ चीफ़ साहब 
आज भी चीफ़ साहब ऐसे तमाम साथियों को याद करते है जिन्होंने मानवता की मशाल को जलाये रखने के लिए अपने को स्वाह कर लिया। याद करते है खापर्डे साहब , हरियाणा से अमन कुमार नगरा ,पंजाब से हरभजन सिंह लाखा,मध्यप्रदेश से टी.आर खूंटे ,लखनऊ से राजबहादुर ,इलाहबाद से सोनेलाल पटेल ,बनारस से बी.राम. जंगबहादुर पटेल और देहरादून से पी. सी. बैंस जिन्होंने देश की राजनीती बहुजन समाज केंद्रित करने में अहम् भूमिका अदा की में दिल की गहराईयों से नमन करता हुँ।
जय भीम
कपिल बर्मन 




































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