लोकतंत्र में एक व्यक्ति राष्ट्र से बड़ा कैसे हो सकता है ?

कपिल बर्मन 

 "नायक पूजा लोकतंत्र का स्वभाव नहीं "

धर्म को देश  ऊपर समझते है महाशय जी 

  • अपनी स्वतंत्रता को किसी व्यक्ति के, चाहे वह कितना महान क्यों न हो, चरणों में रखने से बचना, या उस पर भरोसा करते हुए उसे ऐसी शक्तियां देना, कि वह लोकतान्त्रिक संस्थाओं के लिए ही खतरा बन जाए, इस स्थिति से बचना होगा। 
  • एक महान शख्सियत के प्रति कृतज्ञ होने में कोई बुराई नहीं है। पर कृतज्ञता की भी सीमाएं होती हैं जैसा कि आयरिश देशभक्त पैट्रिक डैनियल ओ' कोनेलने कहा है कि सम्मान, प्रतिष्ठा और स्वतंत्रता की कीमत पर कृतज्ञ नहीं हुआ जा सकता।
  • जनता  मालिक की भूमिका में हो और राजनेता समर्पण  भाव से सेवक की भूमिका में हों। 


 जब तानाशाह राजाओं के राजतन्त्र का अंत हुआ, और देस में मानवीय मूल्यों के आधार पर लोकतंत्र का उदय हुआ। जहाँ व्यक्ति विशेष का गौरव देश की गरिमा के अधीन हो गया ! और जनता की सरकार ,जनता द्वारा, जनता के लिए,के  आधार पर लोकतंत्र की स्थापना हुई। 
दलित नहीं दौलत की बेटी 
 लेकिन आज़ादी के सत्तर वर्षों के बाद भी वास्तविक लोकतंत्र का स्वरूप  देखने को नहीं मिला। आज भी लोकतंत्र के भेष में राजतंत्र अस्तित्व में  है। 
भारत में सभी राजनीतिक पार्टियां चाहे वह राष्ट्रीय स्तर की हो,या  क्षेत्रीय स्तर की, दलितों की पार्टी हो या फिर पिछड़ों की पार्टी सभी का मकसद एक सामान सा है ! तमाम  पार्टियां व्यवस्था परिवर्तन किये बिना सत्ता परिवर्तन में यकीन रखती है ! वह चाहती है कि चोर बदल जाए, लेकिन चोरी जारी रहे ! चोरी कोई भी रोकना नहीं चाहता, उनका लक्ष्य यह है कि सत्ता के स्वभाव के बदले बिना सत्ता हांसिल हो जाये !
साथियों इस चोरी की होड़ में हमने संविधान के नैतिक मूल्यों को भूल कर लालचवस् व्यक्ति विशेष की भगति या नायक-पूजा में लीन हो गए ! परिणाम स्वरूप हम गुलामी की और अग्रसर है !
कांग्रेस का सेहजदा 
मोदी,योगी,मायावती, मुलायम सिंह यादव,  लालू यादव और गाँधी परिवार जैसे अनेक पार्टी प्रमुखों की "गुलामी कभी टिकट के लिए, तो कभी पद के लिए" गुलामी धीरे-धीरे नायक पूजा में बदल गयी! और नायक पूजा के चलते राजनेताओं को हमने तानाशाह बना दिया और लोकतंत्र को अप्रत्यक्ष रूप से कमजोर करने चल पड़े!
हमें चिंतन करना होगा जॉनस्टुअर्ट मिल द्वारा दी गयी चेतावनी पर, जो उन्होंने लोकतंत्र को सहेजने को इच्छुक हर शख्स को दी थी-" अपनी स्वतंत्रता को किसी व्यक्ति के, चाहे वह कितना महान क्यों न हो, चरणों में रखने से बचना, या उस पर भरोसा करते हुए उसे ऐसी शक्तियां देना कि वह लोकतान्त्रिक संस्थाओं के लिए ही खतरा बन जाए, इस स्थिति से बचना होगा।
मुसलमानों का मसीहा 
एक महान शख्सियत के प्रति कृतज्ञ होने में कोई बुराई नहीं है। पर कृतज्ञता की भी सीमाएं होती हैं जैसा कि आयरिश देशभक्त पैट्रिक डैनियल ओ' कोनेलने कहा है कि सम्मान, प्रतिष्ठा और स्वतंत्रता की कीमत पर कृतज्ञ नहीं हुआ जा सकता। 

 बतौर धर्म, भक्ति आत्मा की मुक्ति की राह भले हो सकती है। पर राजनीति में, भक्ति यानायक-पूजा लोकतन्त्र के अवसान और अंततःतानाशाही की ओर ही ले जायेगी। "
सम्मानित देश भग्त नागरिकों से करबद्ध निवेदन है कि देस में वास्तविक लोकतंत्र को स्थापित करने हेतु राजनेताओं के प्रति भगति (गुलामी) की बजाये राष्ट्र एकता और अखण्डता  में विशवास  रख राष्ट्रनिर्माण में अपनी अहम् भूमिका अदा करें ! किसी  धर्म, परम्परा, विशवास और आस्था को देस की आस्था के ऊपर न समझे !
पिछड़ों का पैरोकार 
राष्ट्र का विकाश, राष्ट्र में शांतिपूर्ण वातावरण और राष्ट्र की सुरक्षा तभी संभव हो सकती है जब देस में वास्तविक लोकतंत्र कायम हो जिसमे जनता मालिक की भूमिका में हो और राजनेता समर्पण भाव से सेवक की भूमिका में हों!
भारत में अंतिम पायदान पर खड़े भारतीय को देस के संविधान के अनुसार न्याय, मान-सम्मान, सावभिमान और सामान अवसर के साथ जीवन जीने का हक़ मिले और वह अंतिम नागरिक अपने को भारतीय होने पर गर्व करे!
जय भीम जय भारत
कपिल बर्मन  

Comments