मैं नारी हूँ, किसी की माँ, बहन मेरे संबन्ध है मैं नहीं

          

 नारी कब करेगी 'अपने स्वतंत्र अस्वित्व की घोषणा ' ? 

                                                                                                                  kapil barman/sre

  • नारी नर्क का द्वार है। 
    नारी कब करेगी अपने स्वतंत्र अस्तित्व की घोषणा ?
  • इस्लाम ने तो मस्जिद में सिर्फ़ मर्दों का प्रवेश जायज माना है। 
  • चीन ने तो सदियों तक नारी में आत्मा (प्राण तत्व) को नाकारा है।
  • नारी का अस्तित्व मात्र  नारी में  है, ने किसी पुरुष के रिश्ते में ।  

अबला नारी 
पुरुष ने नारी को इतना अयोग्य और अपवित्र समझ रखा है कि पुरुषों द्वारा निर्मित शास्त्रों में नारी के मोक्ष के  लिए सीधे तौर पर कोई स्थान नहीं है! अगर नारी मोक्ष चाहती है, तो उसे पुरुष योनि में जन्म लेना होगा !

ऐसे भी धर्म है, जहाँ माना जाता है कि नारी नर्क का द्वार है, इस्लाम ने तो मस्जिद में सिर्फ़ मर्दों का प्रवेश जायज माना है,
गुलामी की काली करतूत 
ओरतों का मस्जिद में प्रवेश तो दूर, उसकी छाया भी मस्जिद पर पड़ने से मस्जिद अपवित्र हो जाती है! चीन ने तो सदियों तक नारी में आत्मा (प्राण तत्व) को नाकारा है नारी को मात्र वस्तु समझा ! उसकी हत्या को अपराध नहीं समझा जाता था ! यानी दुनिया में सभी धर्मों ने नारी को पुरुषों से निम्न माना है, उसका कारण मेरी समझ से दुनियां में सभी धर्म ग्रंथों का निर्माण पुरुषों के द्वारा होना ! इसकी जगह अगर धर्म ग्रंथ नारियों  के द्वारा लीखे जाते तो वस्तु स्थति विपरीत होती !

नारी है  मात्र पुरष की छाया 
ऐसे भी धर्म है, जिनके शास्त्र नारी के लिए अभद्र शब्दों का प्रयोग करते है ! और भी आश्चर्य कि बात है कि जिन धर्मों ने, जिन शास्त्रों ने, जिन साधू-संतों ने, जिन महत्माओं ने नारी को आत्मा  मिलने में सबसे ज़्यादा बाद्धित  किया हो , और नारी अजीब पागल है, साधु, सन्यासी और महात्माओं का पालने का सारा ठेका नारीयों ने ले रखा है! ये सभी मंदिर, मस्जिद नारीयों के बुते चलते है। साधु और सन्यासी नारी के शोषण पर जीते है और उनकी ही करतूत और सडयंत्र है कि नारी को कुछ नहीं मिल पाता और रोज़-रोज़ घोषणा करते है कि नारी नर्क का द्वार है! और नारी उन्ही के चरणों में दूर से नमस्कार करती है!

मित्रो एक शहर में एक महात्मा सत्संग कर रहे थे, एक दिन एक नारी से महात्मा का गलती से स्पर्श (छू) हो गया ! तब महात्मा जी ने नारी स्पर्श को पाप जान  सात दिनों तक उपवास कर प्राश्चित किया तदुपरांत उस सत्संग में नारियों कि संख्या पांच गुना बढ़ गई और नारियों का महात्मा के प्रति सम्मान और बढ़ गया! ये केसी मूर्खता है नारियों की, मेरी समझ से एक भी नारी को उस सत्संग में नहीं जाना चाहिए था! बल्कि उसका बहिस्कार करना चाहिए था! लेकिन यहाँ तो उल्टा ही हो गया, क्योंकि नारी स्वीकार कर चुकी है कि नारी अछूत और अपवित्र होती है!

कितना आश्चर्य जनक है कि एक नारी के छूने से जिन महात्मा ने सात दिन का उपवास किया, ये महासय नारी के पेट में ही नो महीने पलें है , नारी के ही खून से जीवित रहे होंगे और नारी कि गोद में वर्षों बैठे होंगे, स्तनपान किया होगा! अगर अपवित्र होना होगा तो हो चुके होते!
नारी को कब तक जलाया जायेगा ?
-साधु, सन्यासी से मुक्त होने कि ज़रूरत है नारी को और जब तक नारी साधु, सन्यासिओं के खिलाफ बगावत नहीं करती और ये घोषणा नहीं करती की नारी को नर्क का द्वार कहने वालों को कोई आदर नहीं मिलेगा, आज नारी में विद्रोह और बगावत की ज़रूरत है, तब नारी की आत्मा की यात्रा की पहली सीडी पूरी होगी!
-जिन देशों में धर्म का ज़्यादा प्रभाव है उन-उन देशों में नारी को अपमान और शोषण का शिकार होना पड़ता है!
-ये बड़े आश्चर्य की बात है जितना धर्म का प्रभाव कम हो रहा है उसी अनुपात में नारी का अपमान और शोषण कम हो रहा है! होना तो यह चाहिए कि जितना धर्म बढ़े उतना नारी का सम्मान बढ़े गरिमा बढ़े, लेकिन अभी तो जो धर्म ने रुख अख्त्यार किया था वह नारी विरोधी रुख था!

- क्यों अपनाये नारी विरोधी रुख ?

अपने पहचान नहीं बना पायी 
 पांच हजार वर्षों से यह नारी के खिलाफ आवज़े क्यों है, कुछ तो कारण है यह आवाज़े नारी के खिलाफ नहीं है ये पुरुषों कि आवाज़े अपने ही भीतर छिपे  नारी के आकर्षण के विरोध में है ! वह जो भीतर काम वाशना है वो  नारी कि पुकार करती है, नारी के प्रति आकर्षित होती है, जो लोग घर छोड़ कर भाग जाते है, उनके चित कि पुकार और जोर से गुहार मचाने लगती है, उनको नारी और खींचने लगती है और अधिक आकर्षित करने लगती है! वह जो उनके भीतर नारी का आकर्षण वह उस नारी को गाली देता है कि नारी नर्ग का द्वार है, बचें है, ये नर्क हमारे पीछे पड़ा है! कोई भी नारी उनके पीछे नहीं पड़ी है उनकी अपनी ही दमित वासना, उनका अपना ही सप्रेसन जिसको उन्होंने जबरदस्ती दबा रखा है परेशान कर रहा है और उस परेशानी का बदला वह नारी को गलियां देकर पूरा कर ले रहे है! ये गालियों का इतना लम्बा इतिहास हो गया कि इसी कारण नारियों ने भी स्वीकार कर लिया है कि ऐसा ही होगा! ये सन्यासी कहते है ठीक ही कहते होंगे! महात्माओं ने, संतों ने, तथाकतिथ अच्छे कहे जाने वाले लोगों ने नारी के अस्तित्व और आत्मा को प्रकट नहीं होने दिया है! और नारी इन उपर्युक्त अच्छे लोगों के पालन पोषण का आधार रही है!

आप किसी साधु सन्यासी के पास जाओ वहाँ एक भी पुरुष दिखाई नहीं पड़ेगा, सिर्फ़ नारियां ही दिखाई देंगी!

  • जब तक हम योन को सामान्य जीवन का स्वस्थ हिस्सा स्वीकार नहीं करते, तब तक नारी सम्मानित नहीं हो सकती!
  • सप्रेश सेक्सुल्टी-जब तक मनुष्य को वासना का दमन सिखाया जाता रहेगा, तब तक नारी सम्मानित नहीं हो सकती! समाज में व्यात वासना कि निंदा ही अंततः नारी कि निंदा बन जाती है!
    श्रष्ठि की रचेयता नारी 
  • पहली बात तो नारी का अपना कोई अस्तित्व नहीं है, अगर उसे अपने अस्तित्व कि घोषण करनी है तो उसे कहना पड़ेगा में-में हूँ! में किसी कि पत्नी नहीं वह पत्नी होना गौण है, में-में हूँ ! में किसी कि माँ नहीं माँ होना गौण है, में-में हूँ! में किसी कि बहन नहीं बहन होना गौण है! वह मेरा अस्तित्व नहीं मेरे अस्तित्व के अन्नत सम्बंधों में से एक सम्बन्ध है! वह सभी सम्बंद्ध है वह में नहीं हूँ !ये स्पस्ट भाव आने वाली पीढ़ी की एक-एक लड़की में, एक-एक युवक्ति में, एक-एक नारी में होना चाहिए! 
नारी शक्ति 
  • मेरा भी अपना अस्तित्व है कितनी हैरानी की बात है कि पृथवी पर नारी कि संख्या पुरुषों से ज़्यादा है, लेकिन नारी इतनी भयभीत कि रस्ते पर निकलना मुश्किल हो गया है! बिना रक्षक, पहरेदार के रास्ते पर चलना मुश्किल, नारी कि संख्या ज़्यादा है पृथवी पर और नारियां एक बार यह तय कर ले तो यह असंभव है कि एक पत्थर फेंका जा सके उनके ऊपर, एक तंज किया जा सके! लेकिन नारी के पास कोई भाव, कोई आत्मा नहीं है!
  • जब तक हम नैतिकता के नाम पर वासना का दमन सिखायेगें। तब तक नारी का सम्मान और नारी का अस्तित्व में आना असंभव है!
  • जितनी रक्षा मांगी जाती है उसी अनुपात में रक्षित  कमजोर होता चला जाता है! नारी को रक्षा मांगनी बंद कर देनी चाहिए! उचित होगा कि गाली सेह ले, उचित होगा कि पत्थर सेह ले ! कंकड़ पत्थर फेंके जायेंगे गाली दे जायेगी, रास्ते में अपमानजनक शब्द फेंके जायेगे, अगली बार वह नारी अपने पति को साथ लेकर या अपने बेटे को साथ लेकर निकलेगी, वह जो पुरुष सड़क पर नारी को परेशान कर रहा है उससे बचने के लिए दूसरे पुरुष का सहारा लेगी तो यह दास्ताँ कभी भी ख़त्म होने वाली नहीं, यह दास्ताँ जारी रहेगी! अगर पुरुष बहार परेशान कर रहा है तो यह पुरुष वही है जो घर में बैठा है! ये दूसरा पुरुष नहीं है! जिसने आप पर पत्थर फेंका है गाली दे है! वह भी किसी का भाई, किसी का पति है! और आपका भाई, आपका पति भी रास्ते में ये ही कर रहा होगा! इसको ध्यान रखना ज़रूरी है!
  •  यह सवाल एक पुरुष का नहीं है यह पुरुष कर रहा है और सवाल पुरुष के हाथ रक्षा मांगने का नहीं है! जितनी रक्षा मांगी जाती है। उतना ही रक्षित कमजोर होता चला जाता है! नारी को रक्षा मांगनी बंद कर देनी चाहिए

कपिल बर्मन 

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